मुसलमान किन चीज़ो में आस्था रखता है?

एक मुस्लिम अल्‍लाह में आस्‍था या ईमान रखता है अल्‍लाह जो कि खुदा का अरबी भाषा में नाम है। उसका अल्‍लाह के बारे में ये आस्‍था है के अल्‍लाह के सिवा कोई ईबादत के लाईक़ नही और ये के मोहम्‍मद उसके आखरी पैग़म्‍बर (ईश्‍तदूत) है।

एक मुस्लिम हज़रत मोहम्‍मद की पूजा व ईबादत नही करता और ना ही ये मानता है के हज़रत मोहम्‍मद खुदा (ईश्‍वर) के बेटे या अवतार है ना ही वोह किसी बडी़ हस्‍ती जैसे पैग़म्‍बर ईसा या मूसा (अलयहिस्सलाम) को खुदा का बेटा मानता है। मुसलमान ये अक़ीदा (आस्‍था) रखते है के अल्‍लाह इन सब चीज़ो से बहुत बरतर है के उसका कोई बेटा हो। अल्‍लाह मुमताज़ है उसके जैसो कोई नही। उसके वजूद को मेहसूस किया जा सकता है लेकिन उसके इसेंस (ज़ात) और फितरत को समझना इंसान की ताक़त से परे है।

ना तो वोह पैदा किया गया है ना ही उसके बच्‍चे है ना ही उसे मौत आती है। मुसलमान ये नही मानते के अल्‍लाह इंसान की तरह है या इंसान जैसा दिखता है ना ही ये के इन्‍सान उसी की छवि में बनाया गया है। ईस्‍लाम एक एकेश्‍वरवाद (तोहीद) में यकीन रखता है – यानी सिर्फ एक खुदा पर ईमान रखना। ईस्‍लामी अक़ीदा अल्‍लाह के बारे में को तौहीद (सिर्फ एक में यकीन रखना) – ये ईस्‍लामी अक़ीदे का केन्‍द्र बिन्‍दु है। मुस्लिम आस्‍था के चन्‍द बिन्‍दुओं पर यकीन रखते है इनको ईमान कहा जाता है। यानी अल्‍लाह पर ईमान, उसके फरीश्‍तो पर, उसकी किताबो पर, उसके पैग़म्‍बरो पर, रोजे़ जज़ा पर (क़यामत के दिन पर), और ये के तकदीर चाहे वोह अच्‍छी हो या बुरी हो अल्‍लाह की तरफ से है। और ये ईमान (आस्‍था) यकीन की बुनयाद पर होना चाहिए।

फरिश्‍ते गे़ब (‍छुपी हुई या गैर अहसास) की दुनिया से ताल्‍लुक रखते है, जिन्‍हें नूर से बनाया गया है, जो अलग-अलग रूप ले सकते है जो ना खाते है ना पीते है ना पैदा करते है। ना उसकी अपनी आज़ादाना खुदमुख्‍तारी है और वोह अल्‍लाह के सिवा किसी और की बिना ताखीर और बिना लापरवाही के ईबादत करते है। इनमें से कुछ फरीश्‍ते उनके नामों से जाने जाते है मिसाल के तौर पर जिब्राहील (Gabriel) जो कि पैग़म्‍बरो पर वह्यी लाया करते थे।

जो किताबे पैग़म्‍बरो पर नाजिल हुई उसमें तोरा (तौरात) मूसा (अलयहिस्सलाम) पर जबूर (psalms) दाऊद (अलयहिस्सलाम) पर, इंजील (gospel) हज़रत ईसा (अलयहिस्सलाम), और आखिर में क़ुरआन हज़रत मोहम्‍मद (स्वललल्लाहो अलयहि वसल्लम) पर नाजिल हुआ। मुस्लिम इन सब पर ईमान रखते है लेकिन वोह इत्बिाह सिर्फ आखिरी किताब यानी क़ुरआन जो कि आखरी है और पूरे मोतबर तरीके से पहुचाया गया है, अल्‍लाह सुबानहू तआ़ला की तरफ से नाजिल किया गया है एक आखरी अहदनामा है। (क़ुरआन चेप्‍टर नं. 5, आयत नं. 48 तर्जुमा माअ़निऐ क़ुरआन)

रोजे़ जज़ा के दिन से मतलब उस दिन का है जब सारी ईन्‍सानियत को दोबारा जिन्‍दा किया जायेगा अपने नये जिस्‍म के साथ वोह अल्‍लाह के सामने खडे़ होगे उसके फैसले के लिए जो कि हमेशा उनकी नाखत्‍म होने वाली तक़दीर के बारे में होगा। उनको दिखा दिया जायेगा जो कुछ भी उन्‍होने अपनी जिन्‍दगी में अच्‍छा किया या बुरा किया। इसलिए मुसलमान ये ईमान रखते है के हम सारे आमाल के लिए जो हम इस दुनिया में करते है उसके लिए हमारा हिसाब किताब होगा और इसको जानते हुए ही हमे जिन्‍दगी के सारे आमाल अंजाम देने है।

अल्‍लाह सुबानहू व तआ़ला के पास सब तरह का रहम और सब तरह की ताक़त है। कुछ भी उसकी मर्जी के बिना नही होता, लेकिन ये ज़रूरी नही कि वोह हर बात से खुश होता हो। अल्‍लाह तआ़ला ने हमे साफ तौर पर बता दिया है के क्‍या सही है और क्‍या गलत है, अपनी (ईलाहिया यानी दिव्‍ये) पैमाने के मुताबिक। अल्‍लाह तआ़ला की मर्जी ये है के ईन्‍सानो के पास आज़ादीऐ राय अपनी सोच और अपने अमल (कार्य) में होना चाहिए। इसलिए कुछ इंसान उसके कानून के मुताबिक चलने का रास्‍ता चुनते है और दुसरे उसके बागी हो जाते है।

अल्‍लाह सुबानहू तआ़ला हर बालिग आदमी को रोजे़ जज़ा के दिन उसका फैसला करेगा. अपनी हिकमत और न्‍याय के साथ कुछ लोगों को वोह स्‍वर्ग (ज़न्‍नत) में दाखिल करेगा और कुछ को वोह ज़हन्‍नुम (नर्ख) में दाखिक करेगा। दोनो ज़न्‍नत और दोज़ख हमारी समझने की ताक़त से परे है सिवाये ये के जैसाकि उनके बारे में क़ुरआन में बताया गया या अल्‍लाह के अम्बिया ने हमें खबर की। ज़न्‍नत को दुसरे भी कई नामों से जाना जाता है। ज़हन्‍नुम यानी नरक के बारे में कई तरह के बयान आये है जिसमें नाकाबिले तसव्‍वुर अज़ाब (यातनाऐ) देने का जिक्र है।

क़ुरआन पैग़म्‍बर हज़रत मोहम्‍मद (स्वललल्लाहो अलयहि वसल्लम ) पर नाजिल हुआ हज़रत जिब्राहिल फरीश्‍ते के ज़रिए 7 सदीं ईसवी में अरेबिया में इस आयत के साथ :

ٱقۡرَأۡ بِٱسۡمِ رَبِّكَ ٱلَّذِى خَلَقَ ( ١ ) خَلَقَ ٱلۡإِنسَـٰنَ مِنۡ عَلَقٍ ( ٢ ) ٱقۡرَأۡ وَرَبُّكَ ٱلۡأَكۡرَمُ 
( ٣ ) ٱلَّذِى عَلَّمَ بِٱلۡقَلَمِ ( ٤ ) عَلَّمَ ٱلۡإِنسَـٰنَ مَا لَمۡ يَعۡلَمۡ ( ٥ )

"पढो, अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया. इंसान की तखलीक़ की एक लोथडे से. पढिये की आप का रब बहुत करीम है जिस ने क़लम के ज़रिये इल्म सिखाया. इंसान को वोह कुछ सिखाया जो वोह नही जानता था." (तर्जुमा माअ़निऐ क़ुरआन सूरह 96, आयत 1 से 5)



   


Share on Google Plus

About Khilafat.Hindi

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments :

इस्लामी सियासत

इस्लामी सियासत
इस्लामी एक मब्दा (ideology) है जिस से एक निज़ाम फूटता है. सियासत इस्लाम का नागुज़ीर हिस्सा है.

मदनी रियासत और सीरते पाक

मदनी रियासत और सीरते पाक
अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) की मदीने की जानिब हिजरत का मक़सद पहली इस्लामी रियासत का क़याम था जिसके तहत इस्लाम का जामे और हमागीर निफाज़ मुमकिन हो सका.

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास
इस्लाम एक मुकम्म जीवन व्यवस्था है जो ज़िंदगी के सम्पूर्ण क्षेत्र को अपने अंदर समाये हुए है. इस्लामी रियासत का 1350 साल का इतिहास इस बात का साक्षी है. इस्लामी रियासत की गैर-मौजूदगी मे भी मुसलमान अपना सब कुछ क़ुर्बान करके भी इस्लामी तहज़ीब के मामले मे समझौता नही करना चाहते. यह इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी की खुली हुई निशानी है.