खिलाफत राशिदा सानी (II nd) पर 100 सवाल (91-92)

➡ सवाल नं. (91): क्या खिलाफत अरब लीग या ओ.आई.सी. (ओर्गेनाईजेशन ऑफ इस्लामिक कॉफ्रेंस) जैसे मुस्लिम संघठनो को मान्यता देगी और उसका हिस्सा बनेगी?


  • नही, खिलाफत इन संघठनों का हिस्सा नही बनेगी, क्योंकि यह सघंठन खिलाफत के खत्मे के बाद मुसलमानों में इत्तिहाद व एकता पैदा करने के नाम पर, साम्राज्यवादीयों और ऐजेंट हुक्मरानों द्वारा स्थापित किए गए थे।

    यह इसलिए भी क्योंकि जब उन्होंने देखा कि मुसलमान क़ौम अपनी आपसी फूट की वजह से मायूस हो रही है तब उनके दिलो को तशफ्फी के लिए यह नकली संस्थाए बनाई जो कि सही मायने में उम्मते मुस्लिम के अंदर कोई इत्तेहाद पैदा नही करती है।
     
  • यह उम्मत को मुत्तहिद और एहसास देने के लिए बनावटी संस्थाऐ बनाई गई थी। यह गै़र-मुखलिस और बांटने वाली संस्थाए है जिनका कोई मक़सद नही है, इसके साथ ही इस्लामी शरीअत में इसकी कोई दलील नही है कि मुस्लिम सरज़मीनों में बहुत सारे हुक्मरानों की मिली-जुली कोई सरकार हो या इत्तिहादुल मुस्लिमीन के लिए ओ.आइ.सी और अरब लीग जैसी संस्था कि ज़रुरत हो, 
  • जबकि यह तो इस्लाम के हुक्म के विपरीत है जिसमें कहा गया कि तमाम मुस्लिम उम्मत पर फर्ज़ है कि वोह सिर्फ एक खलीफा के मातहत रहें।

खिलाफत राशिदा सानी (II nd) पर 100 सवाल


➡ सवाल नं. (92): खिलाफत अपने आपको एक रोग स्टेट (दादागिरी करने वाला राज्य) के इल्ज़ाम के लेबल से कैसे महफूज़ रखेगी है?


  • इस्लामी रियासत के लिये दादागिरी करने वाला राज्य का लक़ब पश्चिमी साम्राज्यवादी ताक़तों ने एक प्रोपगन्डे के तहत, मुस्लिम देशों में अपनी मुदाखलत और हस्तक्षेप को जाईज़ क़रार देने और मुसलमानों की तरफ से किसी भी रद्दे अमल को रोकने के लिए तैय्यार कर रखा है कि जब भी मुसलमान अपने हक़ के लिए और इस्लामी रियासत के क़याम के लिए लडा़ई लडे़ तो उन पर यह इल्ज़ाम लगाया जाए कि यह एक गुण्डा क़िस्म का राज्य पैदा करना चाहते है.
  • इस तरह उन लोगो को रोका जा सके जो पश्चिमी ताक़तों को इस्लामी सरज़मीनो से निकालना चाहते है और अपनी ज़िन्दगी इस्लाम के मुताबिक गुज़ारना चाहते है ।
  • पश्चिम का खिलाफत को दादा राज्य कहने के पीछे ऐजेंडा ही यहीं है कि इस्लाम को हिंसा से जोड़ा जाए और यह की जो कोई इस्लाम कि तरफ पुकारता है वोह हिंसा कि तरफ पुकारता है।
  • इन सब प्रोपगंडो से खिलाफत ज़रुरी समझते हुए आक्रमक तौर पर निपटॆगी और उनके झूठ, षडयंत्र, और साम्राज्यवादी योजनाओं को बेनक़ाब करेगी ।
  • आज पश्चिमी ताक़तों ने खुद एक बहुत बडा़ गुण्डा राज्य चलाया हुआ है। उसने ऐसे कई घिनौने क़िस्म के जुर्म किए है जिसकी निन्दा दुनिया के दूसरे राज्यों ने कभी नही की।
➡ इराक़ का काला सोना (Petroleum) पाने के लिए अमेरिका ने सामूहिक विनाश करने वाले (Weapons Of Mass Destruction) हथियारो के ताल्लुक़ से झूठ गढ़ा,
➡ इसके साथ ही अबू ग़रीब कांड के खुलासे से उसकी बेइंतेहा लालच उजागर हुई ।
➡ पश्चिम के बेन अली, गद्दाफी और मुबारक जैसे मुस्लिम हुक्मरानों से नज़दीकी संबधो पर आज तक किसी दूसरे देश ने पश्चिम को शर्मिन्दा नही किया।
  • उम्मत को इस बात की सफाई देने की क़तई ज़रूरत नही है कि इस्लामी रियासत गुण्डा राज्य है या नही। क्योंकि यह चर्चा (Discussion) पूंजीवादीयों के मफाद व हक़ में है इसलिए वोह चाहते है कि इस मुद्दे पर चर्चा हो । इस चर्चा से लोगो का ध्यान मुस्लिम दुनिया में पश्चिम के साम्राज्यवाद और अपराधों से हटाकर इस्लामी राज्य के पोलिसियों की तरफ चला जाता है और इस तरह उनके गुनाहों पर पर्दा चड़ जाता हैं।  
  • इस तरह के प्रोपगेंडो के ज़रिए पश्चिमी ताक़ते उन सभी मुस्लिम देशों में इस्लाम कि वापसी को बदनाम करती है जहाँ इस्लाम कि जड़े बहुत गहरी है। दर हक़ीक़त खिलाफत का इस्लाम को मुकम्म्ल लागू करना ही पश्चिम के प्रोपगेंडो का असली जवाब होगा।
  • हमें यह नही भूलना चाहिए कि मुस्लिम दुनिया, दुनिया का सबसे ज़्यादा ऊर्जा सांसधन रखती है जैसे तेल, गैस वगैराह जिसें इस्लामी खिलाफत पश्चिमी पूंजीवादी ताक़तों को आपस में बांटने, और आपस में एक दूसरे को मफाद की लडा़ई में झोंकने के लिए इस्तिमाल करेगी ।
  • यहीं वोह काम है जिसे सन् 2006 में जब सऊदी अरब ने किया. उसने अमरीका को 6 लाख बेरल कच्चा तेल प्रतिदिन, 43 बिलियन यूरो के तहत अमरीका को देना था और सऊदी अरब ने अमरीका को उसकी नाइत्तकाफी की वजह से धमकी दी तो उससे अमरीका को बहुत बडा़ नुक्सान पहुंच रहा था और उसकी अर्थव्यवस्था थर्थराने लगी थी।
  • इसकी वजह बर्तानिया की एक संस्था थी जिसका नाम सीरियस फ्रोड ऑफिस था। यह बर्तानिया और सऊदी अरब के तेल के लेन-देन की जांच कर रहा था। उस फ्रोड़ में बर्तानिया की हुकूमत के लोग भी मुजरिम साबित  हो सकते थे और दूसरी तरफ सऊदी अरब के भी बहुत बडे़ घोटाले सामने आ सकते थे।
  • सऊदी अरब गोर्वमेंट ने अमरीका की गोर्वमेंट के ऊपर यह दबाव डाला कि इस जांच को रोक दे वरना वो उसे तेल नही देगा और वो मज़बूर हो गई क्योंकि उस जांच से सऊदी अरब को बहुत नुक्सान पहुंचने वाला था।
  • इससे पता लगता है कि एक सऊदी अरब जैसा देश इतनी बडी़ महाशक्ति से अपनी बात मनवा सकता है तो खिलाफत जो कि पूरी तरह से स्वतंत्र राज्य होगी वोह अंतराष्ट्रीय राजनीति के मे कितना असर पैदा कर सकता है.
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