खिलाफते राशीदा सानी (II nd) पर 100 सवाल (75-76)

➡ सवाल नं. (75): खिलाफत उद्योगधंधे किस तरह विकसित करेगी? 

 

हालांकि मुस्लिम देशों ने उद्योगधंधो के मामले में कुछ तरक्की की है लेकिन हक़ीक़त में यह मुस्लिम हुक्मरॉ ही है जिनकी वजह से यह इलाके पिछड़ गए है और उद्योग के अंदर यह अपना कोई मकाम नही रखते।. जब की इन इलाक़ो में दुनिया में सबसे ज़्यादा प्राकृतिक संसाधन पाये जाते है और प्राकृतिक संसाधन ही वो बुनियाद है जिससे किसी देश की आर्थिक तरक्की होती है.

खिलाफत इस ईलाक़े के उद्योगीकरण के लिए निम्नलिखित पॉलिसी पर अमल करेगी : -


(1) खिलाफत क़ायम होते ही, ऊर्जा के सभी साधन जैसे तेल, पेट्रोल, कोयला वगैराह को अपने क़ब्जे़ में लेगी।
(2) खिलाफत कच्चे माल को अपने क़ब्ज़े में लेगी और इन उर्जा संसाधनो के इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार करेगी, जो कि उद्योग बढा़ने के लिए ज़रूरी होते है। इसके साथ-साथ खिलाफत टेक्नोलोजी और कला के क्षेत्र के लिए पॉलिसी तैयार करेगी जिसे वोह सभी विदेशी कंपनीयों के ज़रिए अपने यहाँ मुंतकिल करेगी।
खिलाफत, मुस्लिम देशों में मौजूद ज़्यादातर पश्चिमी कंपनीयों को निकाल देगी मगर जो रखी जायेगी वोह इस गरज से रखी जायेगी ताकि उनसे जल्द से जल्द टेक्नोलोजी और कला मुसलमानों में ट्रांसफर कर दी जाए और फिर उसको फैला दिया जाए।
(3) मुस्लिम जमीनों की अर्थव्यवस्था को कृषि प्रधान और बैंक प्रधान से बदल कर उसको उद्योग प्रधान की तरफ ले जायेगी।
(4) खिलाफत आयरन और स्टील इण्डस्ट्रीज़ तामीर करेगी जो कि हेवी इण्डस्ट्रीज़ यानी भारी उद्योगधंधों के लिए ज़रूरी होती है, इसके साथ-साथ ऑयल रिफाइनरीज़ की इण्डस्ट्रीज़ भी तामीर करेगी जो उर्जा के उत्पादन के लिए ज़रूरी होती है।
(5) खिलाफत मिलिट्री उद्योग को बढा़वा देगी। जो न सिर्फ उसके दुश्मनों के लिए रूकावट का काम करेगी बल्कि इससे टेक्नोलोजी को बढा़वा भी मिलेगा क्योंकि दुनिया में जितनी भी टेक्नोलोजी आज पाई जाती है वोह सबसे पहले मिलिट्री के लिए ही बनाई गई थी। जिसे बाद में पुरानी होने पर पब्लिक के इस्तिमाल करने के लिए छोड़ दिया जाता हैं। इससे मालूम हुआ कि मिलिट्री इण्डस्ट्री किसी देश की रीड़ की हड्डी का किरदार अदा करती है जिसके डवलेपमेंट के साथ नए उद्योगधंधे पनपते है।
(6) खिलाफत अपना घरेलू ढांचा (इंफास्ट्रक्चर) जैसे ट्रांसपोर्ट, यातायात, रेलवे, पानी सप्लाई व विद्युत्-वितरण के साधन, टेली कम्यूनिकेशन (इंटरनेट/संचार)  और घरेलू अर्थ व्यवस्था के विकास के लिए ज़रूरी सभी सामानो को जल्द से जल्द विकास करेगी।
(7) खिलाफत, लोगों में साक्षरता बढ़ाने के लिए शिक्षा के नए-नए प्रोग्राम प्रसारित करेगी और उद्योगीकरण के लिए आवश्यक सभी हुनर को जनता में बढा़वा देगी। लोगो को हूनरमंदी के कोर्स करवाकर जल्द से जल्द सक्षम बनायेगी ताकी इस्लामी रियासत के उद्योगीकरण में योगदान दे सके। अगर ऐसी नौबत आई कि हमारे पास वोह हूनर और वोह स्कील नही हुई जिसकी हमें ज़रूरत होगी तो उसके लिए हम विदेशों की भी मदद लेगें।

खिलाफते राशीदा सानी (II nd) पर 100 सवाल

➡ सवाल नं. (76): खिलाफत टेक्नोलोजी (तकनीक) को कैसे विकसित करेगी जबकि वोह पश्चिमी देशों से बहुत पीछे है?


ऐसी कई पॉलिसीज़ है जिन्हें उनके फायदे और नुक्सान दोनों को ध्यान में रखते हुए इस हालत को बदलने के लिए अपनाई जा सकती है। खिलाफत बुनियादी तौर पर इस बात को सुनिश्चित करेगी के टेक्नोलोजी और स्कीलस (कला) कम से कम समय में ज़्यादा से ज़्यादा इस्लामी रियासत में ट्रांसफर (मुंतक़िल) हो जाए, जिसे निम्न लिखित बिन्दुओं के द्वारा हासिल किया जा सकता है : -
(1) दूसरे देशों (बैरूनी मुल्कों) से संयुक्त व्यापार के ज़रिए
(2) रिवर्स  इंजीनियरिंग।
(3) इण्डस्ट्रीयल कोप्रोरेट एसपीओनेज (Industrial-corporate espionage) यानी उद्योगधंधों के मामलें में जासूसी के ज़रिए हूनर का पता लगाकर उसे अपने काम में लेना। जिसमें चीन (चायना) सबसे आगे है। अमरीका की रिसर्च और खौजों में सेन्ध लगा कर चीन ने मिनटों में बिल्कुस उस क़िस्म की चीज़ बनाकर मार्केट में उससे दस गुना कम कीमत में लोंच किया है।
(4) प्रलोभन देकर । जिसमें क़ाबिल लोगों को ईनाम और हौसला अफज़ाई के ज़रिए बढा़वा दिया जायेगा। इस तरीक़े से भी खिलाफत लोगों में कला और टेक्नोलोजी को बढ़ावा देगी।
(5) इसके अलावा ट्रायल एंड एरर तरीक़ा भी इस्तिमाल में लिया जाएगा।
चूंकि हम जानते है कि मुस्लिम दुनिया के तेल संसाधनो पर पूरी दुनिया निर्भर करती है। इसलिए इसे कई देशों को अपने तरफ आकर्षित करने का एक अच्छा ज़रिया बनया जा सकता है।
दोहरा मुआहिदा भी इस्तिमाल में लिया जा सकता है जिसमें कम क़ीमत में तेल उपलब्ध करा कर इसके बदले में टेक्नोलोजी का सौदा किया जा सकता है । संयुक्त व्यापार करते वक़्त इस बात को सुनिश्चित किया जाएगा की टेक्नोलोजी और कला हक़ीक़ी मायनों में खिलाफत तक मुंतक़िल (ट्रांसफर) हो जाए। हांलाकि ऐसा तब हो सकेगा जब कोई मुस्लिम दुनिया से अपनी रज़ामन्दी से संयुक्त मुआहिदा करने के लिए आमदा हो।
हांलाकि सभी देश रिवर्स इंजीनियरिंग से यानी टेक्नोलोजी चुराने की बात से इंकार करते है मगर ऐसा नही होता वोह सभी ऐसा करते है। चीन और रूस ने कई फौजी कार्यवाहीयों में इसे सफलतापूर्वक किया है। इस वक़्त मुख्य चैलेंज जल्द से जल्द विदेशी टेक्नोलोजी को हासिल करने का होगा.
असल समस्या मुस्लिम दुनिया में सियासी ईच्छा (political will) शक्ति की कमी है जिसके कारण उन्हें टेक्नोलोजी पाने की इस तरह की नीति नही सूझती।
इसी तरह इंडस्ट्रीयल एसपीओनेज (Industrial-corporate espionage) के ज़रिए भी कोई भी देश तेज़ी से विकसित कर सकता है, जिसमें टेक्नोलोजी ब्लू प्रिंट की चोरी शामिल है। हालांकि इसके लिए राज्य खुदमुख्तार होना ज़रूरी है जैसे की चायना है, उसने यह कामयाबी कई साल मेज़बान देश के ज़रिए साथ काम करके हाँसिल की है।
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