फ़ौज के अलम और झंडे

फ़ौज को अलविया (लिवा) और रायात (यानी झंडे) सौंपे जाते हैं। ख़लीफ़ा लिवा उसे देता है जिसे वो फ़ौज पर अमीर मुक़र्रर करता है लेकिन रायात , वो अमीर सौंपते हैं जिन्हें लिवा दिया गया हो।
इसकी दलील रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم का अमल है। आप صلى الله عليه وسلم ने फ़ौज को अलविया और रायात अता किये। इब्ने माजा ने इब्ने अब्बास (رضي الله عنه) से  रिवायत किया:


))أن راےۃ رسول اللّٰہ ﷺ کانت سوداء و لواؤہ أبیض((
रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم का रायात काले रंग का था जबकि आप صلى الله عليه وسلم का लिवा सफ़ेद था

तिरमिज़ी ने बरा बिन आज़िब (رضي الله عنه) से रिवायत किया कि जब उनसे रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم के झंडे के मुताल्लिक़ सवाल किया गया तो आप ने बताया:

))کانت سوداء مربعۃ من نَمِرَۃ((

वो काले रंग का , चौकोर शक्ल का और नमीरह का बना हुआ था

और क़ामूस अलमुहीत में नमीरह के मुताल्लिक़ बयान किया गया है:

))والنَّمِرَۃ کفَرِحَۃ القطعۃ الصغیرۃ من السَّحاب جمعھا نَمِرٌ و الحِبَرَۃُ و شَمْلَۃٌ فیھا خطوط بیضٌو سُودٌ أو بُرْ دَۃٌ من صوفٍ تَلبَسُھا الأعراب((

नमीरह एक ऊनी कपड़े का टुकड़ा है जिस पर सफेद और काली लकीरें हो या ऊनी कपड़े का टुकड़ा जैसा कि अरब बद्दू पहनते हैं ।

रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم का अलम अल उक़ाब कहलाता था जो कि काले ऊनी कपड़े का बना हुआ था। अहमद और इब्ने माजा ने हारिस बिन हस्सान अल बकरी से रिवायत किया कि:

))قدِمْنا المدینہ فإذا رسول اللّٰہ ﷺ علی المنبر، و بلال قائم بین یدیہ متقلد السیف بین یدي الرسول ﷺ و إذا رایات سُودٌ ، فسألت ما ھذہ الرایات ؟ فقالوا: عمرو بن العاص قَدِ مَ من غَزاۃ((

हम मदीना में आए तो हम ने रसूलुल्लाह  صلى الله عليه وسلم को मिंबर पर तशरीफ़ फरमा देखा, जबकि बिलाल  (رضي الله عنه) आप صلى الله عليه وسلم के सामने आप صلى الله عليه وسلم की तलवार बांधे खड़े थे और रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم के सामने काले झंडे (रायात) मौजूद थे। मेंने कहा: ये झंडे क्या हैं? उन्होंने बताया: अमरो बिन अल आस अभी जंग से वापिस लौटे हैं

तिरमिज़ी ने ये अल्फाज़ रिवायत किये:

))قدمت المدینۃ فدخلت المسجد فإذا ھو غاصٌ بالناس و إذا رایات سود تخفق و إذا بلال متقلّد السیف بین یدي رسول اللہ ﷺ قلت ما شأن الناس؟ قالوا: یرید ان یبعث عمرو بن العاص وَجھاً((

मैं मदीना पहुँच कर मस्जिद में दाख़िल हुआ तो मेंने देखा कि मस्जिद लोगों से पुर है और काले झंडे (रायात) लहरा रहे हैं और बिलाल (رضي الله عنه) ने रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم की तलवार ज़ेब तन कर रखी थी और वो रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم के सामने खड़े थे। मेंने पूछा: ये क्या मुआमला है  उन्होंने जवाब दिया: आप صلى الله عليه وسلم अमरो बिन अल आस (رضي الله عنه) को किसी इलाक़े की तरफ़ रवाना करना चाहते हैं

इब्ने माजा ने जाबिर (رضي الله عنه) से रिवायत किया:

))أن النبیﷺ دخل مکۃ یوم الفتح و لواؤ ہ أبیض((

नबी صلى الله عليه وسلم फ़तह के दिन मक्का में दाख़िल हुए और उन का लिवा सफ़ेद रंग का था

और नसाई ने अनस (رضي الله عنه) से  रिवायत किया:

((أن ابن أم مکتوم کانت معہ راےۃ سوداء فی بعض مشاھد النبي ﷺ )) و عنہﷺ : ((أنہ حین أمَّر اأُسامۃ بن زید علی الجیش لیغزو الروم عقد
لواء ہ بیدہ))

रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم की बाअज़ जंगों में इब्ने उम्मे मकतूम के पास काला रायात था । और अनस (رضي الله عنه) से ये भी मर्वी है:  जब रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم ने रुम के ख़िलाफ़ लड़ने के लिये उसामा बिन ज़ैद (رضي الله عنه) को लश्कर का अमीर मुक़र्रर किया तो आप صلى الله عليه وسلم ने अपने हाथों से उन के लिये लिवा बान्धा

लिवा, रायात से मुख़्तलिफ़ होता है। अबुबक्र बिन अल अरबी ने बयान किया: 

“लिवा, रायात से मुख़्तलिफ़ होता है, लिवा नेज़े के सिरे पर बांधा जाता है और उसे इस के गर्द लपेटा जाता है जबकि रायात को नेज़े से बांधा जाता है लेकिन उसे खुला छोड़ दिया जाता है और वो हवा में लहराता है ।“

तिरमिज़ी ने भी इन दोनों के बीच फ़र्क़ की तरफ़ मीलान किया है । जब उन्होंने लिवा के मुताल्लिक़ लिखा तो वो जाबिर (رضي الله عنه) की हदीस लेकर आए जो कि ऊपर बयान की गई और फिर रायात के मुताल्लिक़ वो बराअ वाली हदीस लाए जिसे भी ऊपर बयान किया गया है। रायात को जंग का अमीर जंग के दौरान इस्तिमाल करता था जैसे कि जंग मौता की हदीस में बयान किया गया कि जब ज़ेद (رضي الله عنه) शहीद हो गए तो जाफ़र (رضي الله عنه) ने रायात थाम लिया। जहां तक लिवा का ताल्लुक़ है तो ये फ़ौज के मअस्कर पर गाढ़ा जाता है जो इस का निशान होता है और ये लश्कर के अमीर के पास होता है, जैसा कि इस हदीस से वाज़िह है जो उसामा (رضي الله عنه) को शाम रवाना करने के मुताल्लिक़ है:

))أنہ ﷺ عقد لواء ہ بیدہ((
और रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم ने अपने दस्त-ए- मुबारक से उन (उसामा) के लिये लिवा बान्धा

यानी उस वक़्त जब आप صلى الله عليه وسلم ने उसामा (رضي الله عنه) को फ़ौज का अमीर मुक़र्रर किया। लिवा और रायात के दरमियान फ़र्क़ ये है कि लिवा को नेज़े के सिरे से बांधा जाता था और उसे अलम कहा जाता था जो कि रायात से बड़ा होता था और ये लश्कर के अमीर के ठिकाने को ज़ाहिर करता था। फौज का अमीर जहां भी जाता था ये अलम उसके साथ जाता था। जबके रायात अलम से छोटा होता था, उसे नेज़े से बांधा जाता था और लहराने के लिये छोड़ दिया जाता था। ये झंडा लश्कर के अमीर की निगरानी में होता था और उम्मुल हर्ब (जंगों की माँ) कहलाता था। पस फ़ौज का एक झंडा होता है लेकिन उस की मुख़्तलिफ़ डिवीज़न ,ब्रिगेड और बटालियन के लिये खास झंडे होते हैं।

काले रायात पर सफेद रंग में  لاالہ الا اللّٰہ محمد رسول اللّٰہ लिखा होता है और सफेद लिवा पर काले रंग से لاالہ الا اللّٰہ محمد رسول اللّٰہ लिखा होताहै।

इस्लाम में जो पहला लिवा बान्धा गया वो अब्दुल्लाह बिन जहश (رضي الله عنه) का था। इसी तरह साद बिन मालिक (رضي الله عنه) को काला रायात दिया गया जिस पर सफेद हिलाल (चाँद) बना हुआ था। ये इस बात की तरफ़ इशारा है कि फ़ौज के लिये अलम और झंडे होना लाज़िमी है और ख़लीफ़ा अलम और रायात उसे अता करता है जिसे वो फ़ौज पर मुक़र्रर करता है। जहां तक रायात का ताल्लुक़ है तो ख़लीफ़ा के लिये जायज़ है कि वो ख़ुद ये रायात अता करे या उसे ब्रिगेड कमांडर की मर्ज़ी पर छोड़ दे। जहां तक इस बात का ताल्लुक़ है कि ख़लीफ़ा के लिये रायात तक़सीम करना जायज़ है तो ये इस बिना पर है कि मुस्लिम और बुख़ारी ने सलमा बिन अकू से रिवायत किया कि रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم ने इरशाद फ़रमाया:

))لأعطینّ الراےۃ أو لےأخذنّ بالراےۃ غداً رجلّ یحبہ اللّٰہ ورسولہ أو قال یحبّ اللّٰہ و رسولہ یفتح اللّٰہ علیہ فإذا نحن بعليّ وما نرجوہ۔ فقالوا:ہذا عليّ۔ وأعطاہ رسول اللّٰہﷺ الراےۃ ففتح اللّٰہ علیہ((

कल मैं रायात उस शख़्स को दूंगा या जो शख़्स कल रायात लेगा वो वो शख़्स है जिस से अल्लाह और उसका रसूल صلى الله عليه وسلم मुहब्बत करते हैं या आप صلى الله عليه وسلم ने इरशाद फ़रमाया कि वो अल्लाह और उसके रसूल صلى الله عليه وسلم से मुहब्बत करता है । अल्लाह इस के हाथों फ़तह देगा। अचानक अली (رضي الله عنه) वहां थे जहां हम उन के बारे में तवक़्क़ो नहीं कर रहे थे। तो उन्होंने कहा ये अली (رضي الله عنه) हैं। पस रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم ने आप (رضي الله عنه) को झंडा दिया और फिर अल्लाह ने आप के हाथ पर फ़तह दी ।

जहां तक फ़ौजी ब्रिगेडज़ के उमरा (अमीरों) की तरफ़ से झंडे तक़सीम करने का ताल्लुक़ है तो ये हारिस बिन हस्सान अल बकरी की रिवायत से अख़ज़ किया गया है: 
))وإذا رایات سود((
अचानक वहां काले झंडे नज़र आए


जिस का मतलब है कि इस लश्कर के पास कई झंडे थे, अगरचे इस लश्कर का अमीर एक शख़्स था, क़तअ नज़र इस बात से कि वो लड़ाई से वापिस आ रहे थे या लड़ाई के लिये जा रहे थे। इस का मतलब ये है कि ये झंडे मुख़्तलिफ़ लश्करी यूनिटों के अमीरों पास थे और इस बात की कोई दलील नहीं कि रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم ने ही ये झंडे तक़सीम किये थे। ताहम ख़लीफ़ा के लिये जायज़ है कि वो ज झंडों की तक़सीम को उमरा अल अलविया (ब्रिगेड कमांडरज़) के हवाले कर दे, ये फ़ौज की तंज़ीम के लिये बेहतर है अगरचे ऐसा करना मुबाह में आता है।
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