मुस्लिम क़ौम को नहदा (पुनरजागरण) कैसे हाँसिल हो सकता है?

मुस्लिम क़ौम को नहदा (पुनरजागरण) कैसे हाँसिल हो सकता है?


 दुनियावी तरक्की के मामले में पीछे रह जाने वाली हर पिछड़ी क़ौम खुद को बेहतर हालत में लाने के लिए अपना पुनर्जागरण (Revival/ Renaissance/नहदा) चाहती है ।

उम्मते मुस्लिमा तक़रीबन दो-सौ साल से ज़्यादा मुकम्मल ज़वाल की शिकार है। इसका ज़वाल न सिर्फ ख़िलाफत के खात्में से शुरू हुआ बल्कि खिलाफत मौजूद होने के बावजूद, आखिर सौ साल में बदस्तूर जारी रहा। यह ज़वाल फिक्री इन्हितात में तब्दील होकर उम्मत के इस्लाम को सियासी पसमंज़र में समझने में भी दाखिल हो गया। यही वजह थी जिससे खिलाफत एक आइडियोलोजिकल राज्य (एक विचारधारा रखने वाले राज्य) के तौर पर अपना वजूद खो कर पूरी तरह से पस्त हो गई। इसके साथ ही खिलाफत के इस्लामी विचारधारा पर पकड़ ढीली पड़ जाने की वजह से उसने दुनिया को अपनी तरफ दावत देना छोड़ दिया। इसी दौर में पश्चिम माद्दी तरक्की (Materialistic Development) हांसिल कर रहा था, जहाँ पश्चिमी दुनिया के तमाम पश्चिमी देश मुत्तहिद हो रहे थे व हर एतबार से वृद्धि और उन्नति कर रहे थे । इस सबसे मुसलमान मुतास्सिर होने लगे और उनके बीच ‘नहदा’ पाने और हालत को तबदील करने के लिये बहुत सी तेहरीके व आन्दोलन शुरू हुई। लेकिन इस अर्से के दौरान उनमें से कोई भी पुनर्जागरण पाने में क़ामयाब न हो सकी और उम्मत कि हालत बिगड़ती ही चली गई। उनकी नाक़ामयाबी की कई मुख्य वजहों में से एक वजह यह भी थी कि उन्होंने वक़्तन फवक़्तन अपने दौर की मशहूर चीज़ो को अपने मसायल का हल और नहदा के लिए आवश्यक तत्व समझ कर उसे अपनाया और इस्लामी बुनियादों के बजाय ग़ैर-इस्लामी बुनियादो पर यह तेहरीको और आन्दोलनों कि शुरुआत कि जिसमें उन्होनें राष्ट्रवाद को अपनाकर उसकी दावत दी और कहा कि ख़िलाफत किसी काम नहीं आएगी हमें अपनी दिफा (रक्षा) खुद करनी चाहिए। इसी तरह कुछ ने कहा, नहदा के लिए शिक्षा व टेक्नोलोजी पाना ज़रुरी है, किसी ने कहा मुसलमानो में गरीबी दूर करने से या उनमें मज़बूत अख्लाक़ पाए जाने से नहदा हासिल होगा। यूरोप के इतिहास का अध्ययन करने पर हम यह नही पाते है कि यूरोप ने रियासत बाद में बनाई, पहले उन्होंने यूनिवर्सीटियां कायम कर ली या पहले सभी फिलोसोफर बन गए जिसके साथ-साथ साइंस में कई अविष्कार कर लिए या आर्थिक तौर पर बहुत तरक्की कर ली। हमारे दर्मियान सेक्यूलिरज़्म से मुतास्सिर चन्द नादान मुसलमान यह उल्टी गंगा बहाते हैं। जबकि रियासत अपनी शिक्षा व्यवस्था के ज़रीए नई नस्ल मन मुताबिक़ ढाल देती है।

ग़ौर से देखने पर पर हम पाते है कि आज उम्मते मुस्लिमा में किसी भी चीज़ की कमी नही है। उसके पास वोह सब कुछ हैं जो उसे समृद्ध होने के लिए आवश्यक है, जिसमें पाकिस्तान, मिस्र, जोर्डन और सीरिया कुछ ऐसे मुस्लिम देश है जो टेक्नोलोजी, साइंस, मेडिसीन, फिज़िक्स, इंजीनियरिंग और केमिस्ट्री से संबधित शैक्षणिक संस्थाओं से भरपूर है। दुनिया कि कई सर्वोच्च कम्पनियों में काम करने वाले मुस्लिम देशों के लोग पाए जाते हैं, यहाँ तक की नासा व अमेरीकी इंटेलीजेंस में भी पाए जाते है। मुस्लिम देशों में अपने फील्ड में माहिर लोगो की कमी नही है। जनसंख्या के एतबार से मुस्लिम देश बहुत बड़ी तादाद में मानव संसाधन रखते है। इसी तरह दौलत के मामले में मुस्लिम देशों के पास प्राकृतिक वसाइल (संसाधनों) कि कोई कमी नहीं है । इन सबके बाद भी ये क़ौम तरक्की पर नही है और न ही इसका कहीं कोई नाम दिखाई देता बल्कि तमाम विपरीत हालात उम्मते-मुस्लिमा में पाए जाते है। क़ाबिल लोगो की भरमार होने के बाद भी यह उम्मत का भला नहीं कर पाते बल्कि विदेशी ताक़तों को फायदा पहुंचाते हैं। मिस्र में अपने विषय में पी.एच.डी होल्डर शख्स चाय बेचते हैं। इसके साथ ही हम गाज़ा और सीरीया में लगातार मासूम मुसलमानों के कत्ले आम का मुशाहिदा (अनुभव) कर रहें है। मिस्र की बगावतें सिलसिलेवार जारी है। पाकिस्तान जो कि भ्रष्टाचार का बेहतरीन नमूना है। एक नई समस्या यह कि इन सबके दर्मियान आई.एस.आई.एस नाम के गिरोह ने छोटी सी रियासत बना कर खिलाफत का एलान कर दिया।


पुनर्जागरण (Revival/Renaissance) के अलग-अलग लोगो ने अलग-अलग मायने दिए है जिसमें पुनर्जागरण तकनीकी या माद्दी (Material/पदार्थिक) तरक्की हासिल करने का नाम है, किसी के नज़दीक तालीम से आरास्ता होना, आर्थिक तरक्की हासिल करना जहाँ हर शख्स उच्च श्रेणी की ज़िन्दगी बसर करता हो, समाज में आला अख्लाक़ (नैतिक मूल्यो/Moral Values) का पाया जाना या गैर-इस्लामी फलसफो के मुताबिक़ राष्ट्रवाद (Nationalism) का मज़बूत पाया जाना वगैराह । कुछ लोगो के अनुसार यह चीज़े नहदा (पुनर्जागरण/Renaissance) के लिए आवश्यक हैं।

दर हक़ीक़त नहदा (पुनर्जागरण/Renaissance) फ़िक्री बुलन्दी (वैचारिक उन्नति) का नाम है, न कि कोई आर्थिक बुलन्दी या शैक्षणिक बुलन्दी का नाम। इसलिए यह कहना ग़लत है कि आर्थिक बुलन्दी हक़ीक़ी बुलन्दी है क्योंकि कुवैत किसी भी यूरोपिय देश जैसे स्वीडन, होलैंड और बेल्जियम से आर्थिक तौर पर कई ज़्यादा समृद्ध है व उसकी करंसी किसी भी यूरोपिय देश से कहीं ज़्यादा मज़बूत है मगर फिर भी वोह हक़ीक़ी मायनो में समृद्ध देश नही माना जाता। इसी तरह नहदा के लिए सिर्फ अख्लाक़ की दावत देना भी ग़लत है क्योंकि अख्लाक़ी बुलन्दी हक़ीक़ी (वास्तविक) बुलन्दी नही होती, इसकी बेहतरीन दलील मदीनातुल मुनव्वरा है जहाँ दुनिया के सबसे बेहतरीन अख्लाक़ के लोग पाए जाते है मगर फिर भी मदीना को समृद्ध नही कहा जा सकता । अख्लाक़ महदूद दायरे में इस्लाम को फायदा पहुंचाता है लेकिन उसे इस्लाम फैलाने या मुस्लिम क़ौम की तरक्की के लिए मानक या बुनियाद समझ लेना ग़लत है ।

अरबी भाषा मे लफ्ज़ नहदा का मायना ‘जागना’ या ‘खड़े हो जाना’ होता है । उम्मत की बुरी हालत के पस मंज़र में नहदा के मायने अपनी पस्ती कि हालत से उठ खड़े होना है। हमें पहले यह सवाल खुद से पूछना चाहिए कि इस उम्मत से अल्लाह (سبحانه وتعال) कि क्या मंशा है। फरमाया:

هُوَ ٱلَّذِىٓ أَرۡسَلَ رَسُولَهُ ۥ بِٱلۡهُدَىٰ وَدِينِ ٱلۡحَقِّ لِيُظۡهِرَهُ ۥ عَلَى ٱلدِّينِ ڪُلِّهِۦ وَلَوۡ ڪَرِهَ ٱلۡمُشۡرِكُونَ

“वही तो है जिसने अपने पैग़मबर (हज़रत मोहम्मद صلى الله عليه وسلم) को हिदायत और दीने हक़ के साथ भेजा, ताकि इस (दीन) को (दुनिया के) तमाम दीनों पर ग़ालिब कर दें। चाहें मुश्रीको को कितना ही नागवार क्यों न गुज़रे।“ (सूरह तौबा: 33)

अल्लाह (سبحانه وتعال) ने इस आयत में इस दीन को भेजने का मक़सद बताया कि “यह तमाम दीनों पर गालिब हो जाए” इसलिए इसे सिर्फ रूहानी दीन बना कर नहीं भेजा (रूहानी दीन से मुराद अल्लाह से बन्दे का ताल्लुक़ और चन्द रस्मों रिवाज बताना हैं, जो कि इस्लाम के अलावा दुनिया के सभी धर्म है ) बल्कि यह दीन पूरी दुनिया पर लागू होने योग्य एक मुकम्मल जीवन व्यवस्था है और यह सिर्फ उस वक़्त ही मुमकिन है जब इस दीन को पूरा का पूरा इस दुनिया में सभी दीनों पर गालिब दिया जाएगा। अल्लाह के नबी ( صلى الله عليه وسلم) ने फरमाया:

“बेशक अल्लाह ने मुझे धरती के पूर्व और पश्चिम के सभी हिस्से दिखा दिए है मैने देखा कि मेरी उम्मत का गलबा सब तरफ होगा।” (सहीह मुस्लिम हदीस न.2889)

इसी तरह मुसनद अहमद में तमीमुददारी (رضي الله عنه) से रिवायत है, वह कहते हैं कि नबी करीम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

‘‘बेशक यह यानी इस्लाम हर उस जगह पहुँचेगा जहाँ दिन और रात होते हैं, मिट्टी से बना कोई घर या खाल से बना कोई ख़ेमा ऐसा न होगा जिसे अल्लाह इस दीन में .न ले आए..........’’



दर हक़ीक़त यही चीज़ नहदा है, जिसके लिए काम करना चाहिए। न कि इसलिए कि मुसलमान इल्मी तौर पर, अख्लाक़ी तौर पर या आर्थिक तौर पर बुलन्द हो क्योंकि इस्लाम ने यह मक़सद नही बताया बल्कि इस्लाम कि सरबुलन्दी के लिए काम करने से यह मक़सद खुद ब खुद कवर हो जाएगें।

इसी तरह पुनर्जागरण के लिए यह ज़रुरी कि हुकुमत की स्थापना किसी जामेअ फिक्र (विस्तृत विचार) कि बुनियाद पर होनी चाहिए न कि सिर्फ क़ानून की बुनियाद पर जिसे लोगो पर थोपा जाए। इस तरह कि रियासत पुनर्जागरण पैदा करने के बजाय उससे दूरी का बाइस बनेगी इसलिए किसी-भी पुनर्जागरित देश (Revived Nation) पर ग़ौर करने पर हम पाते हैं कि उसने किसी जामेअ फिक्र यानी अक़ीदे को अपनाया हुआ है जो ज़िन्दगी के हर मसायल के बारे में विचार रखता हैं यानी हयात, कायनात, बनी नो इंसान के बारे में और इस दुनियावी ज़िन्दगी से पहले और बाद इन तमाम के ताल्लुक़ से। इस तरह कोई राज्य जो इस बुनियादी फिक्र पर मुकम्मल ईमान (Believe) रखता हो और उसके लोग भी इस पर ईमान रख कर अपने तमाम आमाल को इससे जोड़ते हो वोह हक़ीक़ी मायनो में पुनर्जागरित मुल्क होता है ।

इसलिए यूरोप सेक्यूलरिज़्म (धर्म की दुनियावी मामलात से जुदाइ) और आज़ादी के तसव्वुर के साथ पुनर्जागरित हुआ। रूस का पुनर्जागरण, पदार्थ वाद और पदार्थिय क्रमिक विकास (Materialism And The Materialistic Evolution) की फिक्र से हुआ जिसमें कोई भी पदार्थया वस्तु प्रकृतिक तौर पर हमेशा बेहतर हालत की तरफ मुंतक़िल होती है। इस तरह रूस इस फिक्र की बुनियाद पर 1917 में हुकुमत क़ायम करके पुनर्जागरित हुआ। अरबों ने भी इस्लामी फिक्र की बुनियाद पर ही पुनर्जागरण हासिल किया जिसे अल्लाह (سبحانه وتعال) के पैग़ाम के तौर पर नबी ( صلى الله عليه وسلم)  लेकर आए थे और बाद में आप ( صلى الله عليه وسلم) नें इसे हुक्मरानी में स्थापित किया। 

इसकी दलील के सिर्फ हुकुमत के ज़रिए क़ानून थोपने से पुनर्जागरण प्राप्त नही हो सकता, पहलीमिसाल तुर्की की है। मुस्तोफा कमाल अतातुर्क ने तुर्की की हालत को बदलने और वहाँ लाने के लिये पश्चिमी तर्ज़ के क़ानून अपना कर उसे वहाँ बलपूर्वक लागू किया। लेकिन वोह नाक़ामयाब रहाऔर नतीजे के तौर पर नहदा न पा सका बल्कि तुर्की मज़ीद ज़वाल का शिकार हो गया। आज  तुर्की को देखने पर हम पाते है कि वोह दुनिया के पस्त देशों में गिना जाता है जबकि उसी दौर में जब कमाल अतातुर्क ने तुर्की पर पश्चिमी क़ानून के निफाज़ की शुरुआत की थी, लेनिन रूस में नहदा लाया क्योंकि उसने हुकुमत सिर्फ क़ानून की बुनियाद पर क़ायम नही की थी
बल्कि एक खास फिक्र की बुनियाद पर जिसे कम्यूनिस्ट फिक्र कहा जाता है।

जहाँ तक अमेरीका, यूरोप और रूस के पुनर्जागरण की बात है तो इन सभी की विचारधारा रूहानीयत से खाली थी इसलिए रूहानी बुनियादों (Spiritual Foundation) पर न होने की वजह से यह बातिल पुनर्जागरण हैं चूंकि हक़ीक़ी पुनर्जागरण बौद्धिक (Intellectual) पुनर्जागरण होता है, ऐसे में कोई भी फिक्री बुलन्दी जो रूहानीयत पर आधारित नही है, वोह बातिल पुनर्जागरण को पैदा करेगी। इसलिए इस्लामी फिक्र पर आधारित पुनर्जागरण के अलावा तमाम पुनर्जागरण बातिल है क्योंकि यह एक मात्र फिक्री बुलन्दी है जो रूहानियत पर आधारित राजनैतिक व्यवस्था को जन्म देती हैं।

यही वजह हैं कि इन देशों में जहाँ बातिल पुनर्जागरण हुआ वहाँ इसकी खामीयाँ ज़ाहिर होने लगी जैसे अमेरीका, जहाँ राजनैतिक तौर भ्रष्टाचार पाया जाता है, समाज में परिवार और शादी का तसव्वुर तबाह हो चुका है जिसकी वजह से लाखों बच्चे बिना शादी के बन्धन के पैदा हो रहे है और कोई भी माता पिता उनकी ज़िम्मेदारी उठाना नही चाहतें क्योंकि यह उनकी ज़िन्दगी में जिस्मानी लज़्ज़तों (आनन्द/उपभोग) को पाने की राह में रुकावट डालता है, पीडोफिलिया के कई केसेज़ आम हैं, रेप की न रुकने वाली वारदातें, गेंग कल्चर (उपद्रवी लोगो की गिरोह साज़ी) इसके साथ ही अर्थ व्यवस्था में महंगाई, आर्थिक संकट, बहुत बड़ी तादाद फाइनेंस कम्पनीयों की कर्ज़दार है जिन्हें बुनियादी ज़रुरत जैसे मकान का कर्ज़ा चुकाते-चुकाते आधी ज़िन्दगी गुज़र जाती हैं।
यही हाल यूरोप का भी है जहाँ इसी तरह के पीडोफिलिया के कई केसेज़ पाए जाते हैं जिसमें मशहूर सेलेब्रिटीज़ तक मुलव्विस  हैं, इसके अलावा वहाँ बच्चों द्वारा शिक्षकों के क़त्ल की वारदाते होती रहती है इत्यादी।
यह बात ध्यान रहें कि वोह अक़ीद जो सिर्फ रूहानीयत तक सीमित हो और उससे कोई राजनैतिक, आर्थिक और समाजिक व्यवस्था नही निकलती, वोह अक़ीदा उसके पैरोकारों को कभी नहदा नही दे सकता जैसे इसाईयत, यहूदियत, सिख धर्म वगैराह ।

रूहानी बुनियाद से मुराद यह है की, कोई शख्स (व्यक्ति) अल्लाह के वजूद पर ईमान रखता हो और इस बात पर कि ज़िन्दगी के तमाम मसायल के हल और नियम क़ायदे क़ानून सिर्फ उसी से मिलते हैं। जब हम किसी समाज या क़ौम मे यह खूबी पायेंगे कि कोई भी अमल या कार्य इस अक़ीदे के मुताबिक़ करे, तो हमें सच्चा नहदा मिलेगा।
इस तरह हमारे पास एक ऐसा अक़ीदा और उससे निकलने वाला निज़ाम होगा जिसमें व्यक्ति इस हक़ीक़त को मानता है कि वोह कमज़ोर और ज़रुरत मन्द है और साथ ही इस बात पर की कोई शख्स अपनी अक्ल से एक क़ामयाब निज़ाम बनाने में असक्षम है जो तमाम इंसानों की ज़रुरतो को सही मिक़दार में पूरी करता हो। इस्लाम वाहिद मब्दा है जिसमें रूहानीयत पाई जाती है और वोह इंसानी फितरत के ऐन मुताबिक़ है। यही वजह है कि जब आप नबी (صلى الله عليه وسلم) ने इस्लाम की दावत दी और आवाम ने इस पर लब्बैक कहा तो आप ने इस फिक्र को राजनैतिक व्यवस्था में लागू करके अरब में सच्चा नहदा लाए। इसलिए उम्मत में आज नहदा के लिए यह ज़रुरी है की इस्लाम को ज़िन्दगी का आधार बनाया जाए और फिर उस पर आधारित निज़ाम स्थापित किया जाए। यही एक मात्र रास्ता है जिससे इस्लाम दुबारा अपनी प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा।

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